यह पुस्तक भारत को आर्थिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत करने के तरीके खोजने और आने वाले दशकों में इसे सर्वाधिक शक्तिशाली और अग्रणी देशों में से एक बनाने के लिये किया जाने वाला एक महत्वाकांक्षी प्रयास है। एक प्रतिबद्ध और जानकारीपूर्ण अनुसंधानकर्ता द्वारा लिखित यह पुस्तक देश में फैली समस्याओं के लिये उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण करती है जो कई कमियों कुशासन, भ्रष्टाचार, औद्योगिक विफलता, डगमगाती अर्थव्यवस्था, इत्यादि का परिणाम है। कई विषयों, जैसे भारत के संसाधन, राजनीतिक प्रशासन, आर्थिक विकास, विभिन्न स्तरों पर विकास कार्यक्रम और वैश्वीकरण के प्रभाव का गहन अध्ययन करके, यह अतीत में जानबूझकर या लापरवाही से की गई गलतियों और स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करने की सोच, अपनाई गई नीतियों, योजनाओं के क्रियान्वन और कार्यक्रमों व आंकलनों का निरीक्षण करती है।
गहन अध्ययन करके एकत्र किए गए असंख्य तथ्यों और आंकड़ों की प्रस्तुतिकरण करने वाला यह कार्य दर्शाता है कि भारत, ग्रामीण विकास, जनसंख्या नियन्त्रण, शिक्षा सुधारों, जल प्रबन्धन, आपदा प्रबन्धन, बिजली उत्पादन, पर्यटन, पर्यावरण मुद्दों, पुलिस, रक्षा सेवाओं व न्याय व्यवस्था के सुधारो में कैसे और क्यों पिछड़ा हुआ है। इसमें दूरदर्शितापूर्ण व विचारपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं कि ऐसी स्थितियों से कैसे निपटा जाये। इसमें उत्तर-पूर्वी राज्यों व काश्मीर मुद्दे जैसी महत्त्वपूर्ण समस्याओं के समाधान देने की कोशिश भी की गई है।
यहां चर्चित विषय की प्रकृति और विभिन्न समस्याओं के बारे में लेखक की अद्वितीय सोच और मूल विचारों को देखते हुए, यह पुस्तक बड़ी संख्या में उन पाठकों को रूचिकर लगेगी जो भारत को प्रगति के पथ पर अग्रसर देखना चाहते हैं। उन्हें ऐसा अनुभव होगा मानों लेखक उनके ही बारे में बात कर रहा है और उनके कल्याण के लिए चिंतित है। इस किताब को लिखने का धाराप्रवाह तरीका इसे और अधिक दिलचस्प बना देता है।
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