कौन थी मीरा? अवस्था या अस्तित्व? विश्वास या पूजा? प्रतिज्ञा या प्रतीक्षा? प्रेमी या दीवानी?
क्या संभव है केवल नाम के सहारे सम्पूर्ण जीवन जी लेना? क्या मीरा के मोहन उनके लिए आलम्बन थे या
स्वतंत्रता? क्या पाया मीरा ने और क्या खोया होगा?
क्या मीरा को मोहन की मूरत की आवश्यकता रही होगी?
यह सवाल अगर बार बार उठ खड़े हो रहे हो आप विचलित हो रहे हों तो यह पुस्तक ज़रूर आपके लिए एक उम्मीद
की किरण है|
मीरा को समझने के लिए एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रही है यह पुस्तक
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